फूल के लायक़ फ़ज़ा रखनी ही थी
डर हवा से था हवा रखनी ही थी
गो मिज़ाजन हम जुदा थे ख़ल्क़ से
साथ में ख़ल्क़-ए-ख़ुदा रखनी ही थी
यूँ तो दिल था घर फ़क़त अल्लाह का
बुत जो पाले थे तो जा रखनी ही थी
तर्क करनी थी हर इक रस्म-ए-जहाँ
हाँ मगर रस्म-ए-वफ़ा रखनी ही थी
सिर्फ़ काबे पर न थी हुज्जत तमाम
बाद-ए-काबा कर्बला रखनी ही थी
ग़ज़ल
फूल के लायक़ फ़ज़ा रखनी ही थी
अब्दुल्लाह जावेद