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फूल इस ख़ाक-दाँ के हम भी हैं | शाही शायरी
phul is KHak-dan ke hum bhi hain

ग़ज़ल

फूल इस ख़ाक-दाँ के हम भी हैं

सैफ़ुद्दीन सैफ़

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फूल इस ख़ाक-दाँ के हम भी हैं
मुद्दई दो जहाँ के हम भी हैं

बहते धारे पे है क़याम अपना
साथ मौज-ए-रवाँ के हम भी हैं

कह रहा है सुकूत-ए-लाला-ओ-गुल
ज़ख़्म-ख़ुर्दा ज़बाँ के हम भी हैं

दूर रहते हैं क्यूँ जहाँ वाले
रहने वाले जहाँ के हम भी हैं

साथ मिस्ल-ए-ग़ुबार हो लेंगे
मुंतज़िर कारवाँ के हम भी हैं

'सैफ़' ये चश्मकें ये रंग-ए-बहार
क्या इसी गुल्सिताँ के हम भी हैं