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फूल बिखराती हर इक मौज-ए-हवा आती है | शाही शायरी
phul bikhraati har ek mauj-e-hawa aati hai

ग़ज़ल

फूल बिखराती हर इक मौज-ए-हवा आती है

साबिर दत्त

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फूल बिखराती हर इक मौज-ए-हवा आती है
आप आते हैं कि गुलशन में सबा आती है

आप के रुख़ से बरसता है सहर का जोबन
आप की ज़ुल्फ़ के साए में घटा आती है

आप के हाथ जो छू जाएँ किसी डाली से
गुल ही क्या ख़ार से भी बू-ए-हिना आती है

आप लहरा के न यूँ दूधिया आँचल को चलें
मुस्कुराते हुए फूलों को हया आती है

आप को क्यूँ न तराशा गया मेरे दिल से
संग-ए-मरमर से हमेशा ये सदा आती है