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फिर वही अंदोह-ए-जाँ है और मैं | शाही शायरी
phir wahi andoh-e-jaan hai aur main

ग़ज़ल

फिर वही अंदोह-ए-जाँ है और मैं

अब्बास कैफ़ी

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फिर वही अंदोह-ए-जाँ है और मैं
शाम है मय है धुआँ है और मैं

ये ज़मीं इक लफ़्ज़ से आगे नहीं
आसमाँ ही आसमाँ है और मैं

या मुसलसल इक सदा-ए-बाज़-गश्त
या सुकूत-ए-बेकराँ है और मैं