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फिर उठाया जाऊँगा मिट्टी में मिल जाने के बाद | शाही शायरी
phir uThaya jaunga miTTi mein mil jaane ke baad

ग़ज़ल

फिर उठाया जाऊँगा मिट्टी में मिल जाने के बाद

इफ़्तिख़ार राग़िब

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फिर उठाया जाऊँगा मिट्टी में मिल जाने के बाद
गरचे हूँ सहमा हुआ बुनियाद हिल जाने के बाद

आप अब हम से हमारी ख़ैरियत मत पूछिए
आदमी ख़ुद का कहाँ रहता है दिल जाने के बाद

सख़्त-जानी की बदौलत अब भी हम हैं ताज़ा-दम
ख़ुश्क हो जाते हैं वर्ना पेड़ हिल जाने के बाद

ख़ौफ़ आता है बुलंदी की तरफ़ चढ़ते हुए
गुल का मुरझाना ही रह जाता है खिल जाने के बाद

फ़िक्र लाहक़ है हमेशा मिस्ल-ए-तुख़्म-ए-ना-तवाँ
हश्र क्या होगा दरून-ए-आब-ओ-गिल जाने के बाद

इस तरह हैरान हैं सब देख कर 'राग़िब' मुझे
जैसे कोई आ गया हो मुस्तक़िल जाने के बाद