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फिर उन की याद के दीपक जलाए हैं मैं ने | शाही शायरी
phir unki yaad ke dipak jalae hain maine

ग़ज़ल

फिर उन की याद के दीपक जलाए हैं मैं ने

हरबंस लाल अनेजा 'जमाल'

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फिर उन की याद के दीपक जलाए हैं मैं ने
कि ख़ुफ़्ता हसरत-ओ-अरमाँ जगाए हैं मैं ने

ज़माना जिन के तसव्वुर से ही लरज़ उट्ठे
क़लील उम्र में वो ग़म उठाए हैं मैं ने

ग़म-ओ-अलम के समुंदर में डूब कर अक्सर
नशात-ओ-ऐश के नग़्मात गाए हैं मैं ने

नहीं नहीं है नहीं क़ाबिल-ए-यक़ीं कोई
ख़ुदा के बंदे बहुत आज़माए हैं मैं ने

हुआ है आज ये इक लम्हा-ए-तरब हासिल
वगर्ना आँसू ही आँसू बहाए हैं मैं ने

'जमाल' तल्ख़ तजरबात बुग़्ज़-ओ-नफ़रत से
तराने मेहर-ओ-वफ़ा के सुनाए हैं मैं ने