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फिर उम्र-भर की नाला-सराई का वक़्त है | शाही शायरी
phir umr-bhar ki nala-sarai ka waqt hai

ग़ज़ल

फिर उम्र-भर की नाला-सराई का वक़्त है

सय्यद तम्जीद हैदर तम्जीद

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फिर उम्र-भर की नाला-सराई का वक़्त है
ऐ दिल फिर एक बार जुदाई का वक़्त है

काम आ न पाएँगे मुझे ये नीम-बाज़ अब
ऐ चश्म-ए-तर ये दीदा-दराई का वक़्त है

सीने में याँ कोई दिल-ए-बे-मुद्दआ नहीं
हाँ चुप हूँ इस लिए कि भलाई का वक़्त है

मजबूर तौर हूँ सो मैं शीरीं नवा रहूँ
गो जानता हूँ तल्ख़-नवाई का वक़्त है

मुझ को मिरे रुख़-ए-अरक़-आलूद की क़सम
उठ्ठूँ जो वो कहे कि लड़ाई का वक़्त है

अब के हुई है फिर से क़फ़स-ज़ादों को उमीद
ख़ुश हो के कह रहे हैं रिहाई का वक़्त है

मुर्ग़-ए-सहर है मुर्ग़-ए-मुसल्ला है और सुब्ह
तीनों के बीच ज़ोर-नुमाई का वक़्त है

'तमजीद' फ़िक्र कर मरज़-ए-जाँ-गुदाज़ की
बेदार हो कि राह-नुमाई का वक़्त है