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फिर न आएगा ये लम्हा सोच ले | शाही शायरी
phir na aaega ye lamha soch le

ग़ज़ल

फिर न आएगा ये लम्हा सोच ले

सलीम शहज़ाद

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फिर न आएगा ये लम्हा सोच ले
सामने बहता है दरिया सोच ले

कश्तियों को फूँक कर आगे न बढ़
डूब जाएगा जज़ीरा सोच ले

देख कर उस को निहत्ता ख़ुश न हो
तजरबा पहला है तेरा सोच ले

अपने शीशे के परों का कर ख़याल
रुख़ नहीं अच्छा हवा का सोच ले

रिश्ता-ए-आब-ओ-सराब इक ख़्वाब है
तू भी साया मैं भी साया सोच ले

अन-कही कह अन-सुनी बातें सुना
रह गया जो कुछ भी सोचा सोच ले