फिर मिज़ाज उस रिंद का क्यूँकर मिले
जिस को उस के हाथ से साग़र मिले
ये भी मिलना है कि बाद-अज़-सद-तलाश
हद्द-ए-वहम-ओ-फ़हम से बाहर मिले
कुछ न पूछो कैसी नफ़रत हम से है
हम हैं जब तक वो हमें क्यूँकर मिले
मेरी आँखें और उस की ख़ाक-ए-पा
तेरे कूचे का अगर रहबर मिले
वस्ल है सर-जोश-ए-सहबा-ए-फ़ना
फिर अगर कोई मिले क्यूँकर मिले
मिलने के पहले फ़ना होना ज़रूर
फिर फ़ना जो हो गया क्यूँकर मिले
'आसी'-ए-गिर्यां मिला महबूब से
गुल से शबनम जिस तरह रो कर मिले
ग़ज़ल
फिर मिज़ाज उस रिंद का क्यूँकर मिले
आसी ग़ाज़ीपुरी