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फिर मिज़ाज उस रिंद का क्यूँकर मिले | शाही शायरी
phir mizaj us rind ka kyunkar mile

ग़ज़ल

फिर मिज़ाज उस रिंद का क्यूँकर मिले

आसी ग़ाज़ीपुरी

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फिर मिज़ाज उस रिंद का क्यूँकर मिले
जिस को उस के हाथ से साग़र मिले

ये भी मिलना है कि बाद-अज़-सद-तलाश
हद्द-ए-वहम-ओ-फ़हम से बाहर मिले

कुछ न पूछो कैसी नफ़रत हम से है
हम हैं जब तक वो हमें क्यूँकर मिले

मेरी आँखें और उस की ख़ाक-ए-पा
तेरे कूचे का अगर रहबर मिले

वस्ल है सर-जोश-ए-सहबा-ए-फ़ना
फिर अगर कोई मिले क्यूँकर मिले

मिलने के पहले फ़ना होना ज़रूर
फिर फ़ना जो हो गया क्यूँकर मिले

'आसी'-ए-गिर्यां मिला महबूब से
गुल से शबनम जिस तरह रो कर मिले