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फिर मिरी आँख तिरी याद से भर आई है | शाही शायरी
phir meri aankh teri yaad se bhar aai hai

ग़ज़ल

फिर मिरी आँख तिरी याद से भर आई है

शिव चरन दास गोयल ज़ब्त

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फिर मिरी आँख तिरी याद से भर आई है
फिर तसव्वुर में वही जल्वा-ए-ज़ेबाई है

दश्त-ए-ग़ुर्बत में वही आलम-ए-तन्हाई है
सर में सौदा है तिरा और तिरा सौदाई है

क्या इरादा है मिरी ज़ीस्त का मैं क्या जानूँ
कश्ती-ए-उम्र मिरी मौत से टकराई है

उल्फ़त-ए-साक़ी-ए-महवश के तसव्वुर में शराब
आज साग़र में परी बन के उतर आई है

आइना देख के लिल्लाह न हैराँ हों आप
इस में मस्तूर जो अफ़साना-ए-रानाई है

एक हंगामा-ए-मशहर है बपा गुलशन में
फिर से ख़तरे में कोई अहद-ए-शकेबाई है

आते हैं ज़ब्त की पुर्सिश के लिए वो शायद
फिर से जुम्बिश में मिरा ज़ौक़-ए-तमाशाई है