फिर मरहला-ए-ख़्वाब-ए-बहाराँ से गुज़र जा
मौसम है सुहाना तो गरेबाँ से गुज़र जा
शीशे के मकाँ और नज़र के मुतहम्मिल
दीवाना न बन शहर-ए-निगाराँ से गुज़र जा
सब क़त्ल के अस्बाब बहम हैं सर-ए-मक़्तल
ऐसे में पस-ओ-पेश न कर जाँ से गुज़र जा
फिर देंगे वही मशवरा-ए-तर्क-ए-मोहब्बत
अहबाब-नुमा हल्क़ा-ए-याराँ से गुज़र जा
कुछ दूर नहीं मंजिल-ए-मक़्सूद-ए-तमन्ना
इक फासला-ए-क़ुर्ब-ए-रग-ए-जाँ से गुज़र जा
ऐ 'दिल' इन्हें इदराक कहाँ नम्रतियों का
जो कहते हैं पल भर में बयाबाँ से गुज़र जा
ग़ज़ल
फिर मरहला-ए-ख़्वाब-ए-बहाराँ से गुज़र जा
दिल अय्यूबी