फिर कोई नया ज़ख़्म नया दर्द अता हो
उस दिल की ख़बर ले जो तुझे भूल चला हो
अब दिल में सर-ए-शाम चराग़ाँ नहीं होता
शो'ला तिरे ग़म का कहीं बुझने न लगा हो
कब इश्क़ किया किस से किया झूट है यारो
बस भूल भी जाओ जो कभी हम से सुना हो
दरवाज़ा खुला है कि कोई लौट न जाए
और उस के लिए जो कभी आया न गया हो
शायद कि तिरे क़ुर्ब से आ जाए मयस्सर
वो दर्द कि जो दर्द-ए-जुदाई से सिवा हो
अब मेरी ग़ज़ल का भी तक़ाज़ा है ये तुझ से
अंदाज़-ओ-अदा का कोई उस्लूब नया हो
ग़ज़ल
फिर कोई नया ज़ख़्म नया दर्द अता हो
अतहर नफ़ीस