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फिर किसी शख़्स की याद आई है | शाही शायरी
phir kisi shaKHs ki yaad aai hai

ग़ज़ल

फिर किसी शख़्स की याद आई है

बीएस जैन जौहर

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फिर किसी शख़्स की याद आई है
फिर कोई चोट उभर आई है

फिर वो सावन की घटा छाई है
फिर मिरी जान पे बन आई है

मस्लहत और कहीं लाई है
दिल किसी और का शैदाई है

अब न रोने की क़सम खाई है
आँख भर आए तो रुस्वाई है

एक हंगामा-ए-दीदार के बा'द
फिर वही ग़म वही तन्हाई है