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फिर के जो वो शोख़ नज़र कर गया | शाही शायरी
phir ke jo wo shoKH nazar kar gaya

ग़ज़ल

फिर के जो वो शोख़ नज़र कर गया

क़ाएम चाँदपुरी

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फिर के जो वो शोख़ नज़र कर गया
तीर सा कुछ दिल से गुज़र कर गया

ख़ाक का सा ढेर सर-ए-रह हूँ मैं
क़ाफ़िला-ए-उम्र सफ़र कर गया

ख़ुल्द-ए-बरीं उस की है वाँ बूद-ओ-बाश
याँ किसी दिल बीच जो घर कर गया

छुप के तिरे कूचा से गुज़रा मैं लेक
नाला इक आलम को ख़बर कर गया

जूँ शरर-ए-काग़ज़-ए-आतिश-ज़दा
शाम-ए-ग़म अपनी मैं सहर कर गया

ता-ब-फ़लक नाला तो पहुँचा था रात
मैं ही कुछ अल्लाह का डर कर गया

पूछ न 'क़ाएम' की कटी क्यूँकि उम्र
जूँ हवा यक-चंद बसर कर गया