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फिर इस तरफ़ वो परी-रू झमकता आता है | शाही शायरी
phir is taraf wo pari-ru jhamakta aata hai

ग़ज़ल

फिर इस तरफ़ वो परी-रू झमकता आता है

नज़ीर अकबराबादी

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फिर इस तरफ़ वो परी-रू झमकता आता है
ब-रंग-ए-मेहर अजब कुछ चमकता आता है

इधर उधर जो नज़र है तो इस लिए यारो
जो ढब से ताकते हैं उन को तकता आता है

कोई जो राह में कहता है दिल की बे-ताबी
तो उस से कहता है क्या तू ये बकता आता है

मिलाप करना है जिस से तो उस की जानिब वाह
क़दम उठाता है जल्द और हुमकता आता है

हमारे दिल की जो आतिश है देने फिर भड़का
जभी 'नज़ीर' वो पलकें झपकता आता है