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फिर इस दुनिया से उम्मीद-ए-वफ़ा है | शाही शायरी
phir is duniya se ummid-e-wafa hai

ग़ज़ल

फिर इस दुनिया से उम्मीद-ए-वफ़ा है

नरेश कुमार शाद

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फिर इस दुनिया से उम्मीद-ए-वफ़ा है
तुझे ऐ ज़िंदगी क्या हो गया है

बड़ी ज़ालिम निहायत बेवफ़ा है
ये दुनिया फिर भी कितनी ख़ुशनुमा है

कोई देखे तो बज़्म-ए-ज़िंदगी में
उजालों ने अंधेरा कर दिया है

ख़ुदा से लोग भी ख़ाइफ़ कभी थे
मगर लोगों से अब ख़ाइफ़ ख़ुदा है

मज़े पूछो कुछ उस से ज़िंदगी के
हवादिस में जिसे जीना पड़ा है

मिरे पहलू में दिल है तो यक़ीनन
अज़ल ही से मगर टूटा हुआ है

ज़बान-ओ-फ़न से मैं वाक़िफ़ नहीं हूँ
मगर विज्दान मेरा रहनुमा है

मिरे नक़्क़ाद मेरी शाइरी तो
मिरे टूटे हुए दिल की सदा है

कहाँ हूँ 'शाद' मैं तो शाद सा हूँ
वो शाद-ए-ख़ुश-नवा तो मर चुका है