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फिर आस-पास से दिल हो चला है मेरा उदास | शाही शायरी
phir aas-pas se dil ho chala hai mera udas

ग़ज़ल

फिर आस-पास से दिल हो चला है मेरा उदास

अर्शी रामपुरी

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फिर आस-पास से दिल हो चला है मेरा उदास
फिर एक जाम कि बरजा हों जिस से होश हवास

हज़ार रंग सही पर नहीं ज़रा बू-बास
हवा-ए-सहन-ए-चमन हम को आए कैसे रास

सितारे अब भी चमकते हैं आसमाँ पे मगर
नहीं हैं शोमी-ए-क़िस्मत से हम सितारा-शनास

खिले हैं फूल हज़ारों चमन के दामन पर
नवा-गरान-ए-चमन को मगर नहीं एहसास

दिल-ओ-जिगर में मुरव्वत से पड़ गए नासूर
हमें नहीं है मगर उस के फल से फिर भी यास

घिरे हुए हैं अगर बर्क़-ओ-बाद-ओ-बाराँ में
तो क्या हुआ कि किनारे की है अभी तक आस

जुनूँ को अपने छुपाएँ तो किस तरह यारो
कि तार तार है इस शग़्ल-ए-पाक का अक्कास

जो बेवफ़ाई-ए-गुल से शिकस्ता-ख़ातिर हो
उसे बताओ कि है बा-वफ़ा-तर उस से घास

मैं इस शराब-ए-मोहब्बत से तंग हूँ 'अर्शी'
कि जितना पीजिए बढ़ती है और उतनी प्यास