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फेंकें भी ये लिबास बदन का उतार के | शाही शायरी
phenken bhi ye libas badan ka utar ke

ग़ज़ल

फेंकें भी ये लिबास बदन का उतार के

तनवीर सामानी

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फेंकें भी ये लिबास बदन का उतार के
कब तक रहें गिरफ़्त में लैल-ओ-नहार के

तस्ख़ीर-ए-काएनात-ओ-हवादिस के बावजूद
हद पा सके न जब्र-ओ-ग़म-ओ-इख़्तियार के

बिखरा हमेशा रेग की सूरत हवाओं में
ठहरा कभी न मिस्ल किसी कोहसार के

तन्हा खड़ा हुआ हूँ मैं दश्त-ए-ख़याल में
ख़ामोश हो चुका भी समुंदर पुकार के

'तनवीर' आगही दें कहाँ तक हयात को
बे-नूर हो चले हैं दिए ए'तिबार के