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फ़ड़फ़ड़ाता हुआ परिंदा है | शाही शायरी
phaDphaData hua parinda hai

ग़ज़ल

फ़ड़फ़ड़ाता हुआ परिंदा है

अहमद सज्जाद बाबर

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फ़ड़फ़ड़ाता हुआ परिंदा है
मान लो कि दुआ परिंदा है

इस कड़ी धूप में मिरे हमराह
रेत आँसू हवा परिंदा है

ख़्वाहिशों का सफ़र नहीं रुकता
ये अजब भागता परिंदा है

झील सूखी तो वो पलट आया
दिल के हाथों मुड़ा परिंदा है

मौत उस को कहो बजा लेकिन
अस्ल में तो उड़ा परिंदा है

आने वाली बहार है 'बाबर'
मेरी छत पर रुका परिंदा है