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पेशानी-ए-हयात पे कुछ ऐसे बल पड़े | शाही शायरी
peshani-e-hayat pe kuchh aise bal paDe

ग़ज़ल

पेशानी-ए-हयात पे कुछ ऐसे बल पड़े

नश्तर ख़ानक़ाही

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पेशानी-ए-हयात पे कुछ ऐसे बल पड़े
हँसने को दिल ने चाहा तो आँसू निकल पड़े

रहने दो मत बुझाओ मिरे आँसुओं की आग
इस कश्मकश में आप का दामन न जल पड़े

हँस हँस के पी रहा हूँ इसी तरह अश्क-ए-ग़म
यूँ दूसरा पिए तो कलेजा निकल पड़े

'नश्तर' वो अहल-ए-इश्क़ भी हैं कितने तंग-नज़र
उन की ज़बान नाम मिरा सुन के जल पड़े