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पेश जो आया सर-ए-साहिल शब बतलाया | शाही शायरी
pesh jo aaya sar-e-sahil shab batlaya

ग़ज़ल

पेश जो आया सर-ए-साहिल शब बतलाया

अजमल सिराज

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पेश जो आया सर-ए-साहिल-ए-शब बतलाया
मौज-ए-ग़म को भी मगर मौज-ए-तरब बतलाया

है बताने की कोई चीज़ भला नाम-ओ-नसब
हम ने पूछा न कभी नाम-ओ-नसब बतलाया

रंग महफ़िल का अजब हो गया जिस दम उस ने
ख़ामुशी को भी मिरी हुस्न-ए-तलब बतलाया

दिल को दुनिया से सरोकार कभी था ही नहीं
आँख ने भी मगर इस रुख़ को अजब बतलाया

ये उदासी का सबब पूछने वाले 'अजमल'
क्या करेंगे जो उदासी का सबब बतलाया