पेश आने लगे हैं नफ़रत से
भर गया उन का दिल मोहब्बत से
फ़ाएदा ये है तेरी क़ुर्बत से
ख़ूब कटता है वक़्त राहत से
काम बनते नहीं हैं नफ़रत से
काम चलते हैं सब मोहब्बत से
उन की ख़ातिर मुझे जहाँ वाले
देखते हैं बड़ी हिक़ारत से
ज़िंदगी मेरी इक मुसीबत थी
मिल गए आप मुझ को क़िस्मत से
सारी दुनिया हरीफ़ है मेरी
इक ज़रा सी तिरी इनायत से
क्या ख़बर थी कि वक़्त पड़ते ही
हाथ उठा लेंगे वो मोहब्बत से
वो शब-ए-वस्ल भी तो पहलू में
बाज़ आते नहीं शरारत से
दिल को चसका पड़ा है कुछ ऐसा
बाज़ आता नहीं मोहब्बत से
कामरानी के वास्ते 'अफ़ज़ल'
काम लेना पड़ेगा हिम्मत से
ग़ज़ल
पेश आने लगे हैं नफ़रत से
अफ़ज़ल पेशावरी