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पेड़ आँगन के तिरे जब बारवर हो जाएँगे | शाही शायरी
peD aangan ke tere jab barwar ho jaenge

ग़ज़ल

पेड़ आँगन के तिरे जब बारवर हो जाएँगे

आज़ाद गुरदासपुरी

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पेड़ आँगन के तिरे जब बारवर हो जाएँगे
दोस्तों के हाथ के पत्थर इधर हो जाएँगे

मेरे अश्कों के ये क़तरे लाख बे-क़ीमत सही
जब तिरे दामन पे टपकेंगे गुहर हो जाएँगे

क्या ख़बर थी हम इधर घर में जलाएँगे चराग़
उस तरफ़ झोंके हवा के बा-ख़बर हो जाएँगे

इस जहान-ए-बे-अमाँ में बर्ग-ए-आवारा हैं हम
जब चलेगी तेज़ आँधी दर-ब-दर हो जाएँगे

ज़ुल्मतों से हार मानेंगे न ऐ 'आज़ाद' हम
ख़ुद फ़रोज़ाँ हो के शम-ए-रहगुज़र हो जाएँगे