पेच-ओ-ख़म वक़्त ने सौ तरह उभारे लोगो
काकुल-ए-ज़ीस्त मगर हम ने सँवारे लोगो
अपने साए से तुम्हें आप है दहशत-ज़दगी
तुम हो किस मस्लहत-ए-वक़्त के मारे लोगो
हम-सफ़र किस को कहें किस को सुनाएँ ग़म-ए-दिल
पम्बा-दर-गोश हुए सारे सहारे लोगो
ज़रबत-ए-संग बने अपनी सदा के ग़ुंचे
गुम्बद-ए-जेहद में हम जब भी पुकारे लोगो
मुझ से तुम दूर भी रह कर हो रग-ए-जाँ से क़रीब
मिरे नादीदा रफ़ीक़ो मिरे प्यारे लोगो
ग़ज़ल
पेच-ओ-ख़म वक़्त ने सौ तरह उभारे लोगो
अदीब सुहैल