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पेच भाया मुझ को तुझ दस्तार का | शाही शायरी
pech bhaya mujhko tujh dastar ka

ग़ज़ल

पेच भाया मुझ को तुझ दस्तार का

सदरुद्दीन मोहम्मद फ़ाएज़

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पेच भाया मुझ को तुझ दस्तार का
बंद है दिल तुर्रा-ए-ज़रतार का

जी फँसा है जा के उस ज़ुल्फ़ों के बीच
दिल शहीद उस नर्गिस-ए-बीमार का

पेच में हूँ तेरे ढीले पेच सूँ
महव हूँ इस चीरा-ए-ज़रतार का

तुझ को है हम से जुदाई आरज़ू
मेरे दिल में शौक़ है दीदार का

क्यूँ न बाँधे दिल को 'फ़ाएज़' ज़ुल्फ़ सूँ
शौक़ है काफ़िर के तीं ज़ुन्नार का