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पयामी कामयाब आए न आए | शाही शायरी
payami kaamyab aae na aae

ग़ज़ल

पयामी कामयाब आए न आए

दाग़ देहलवी

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पयामी कामयाब आए न आए
ख़ुदा जाने जवाब आए न आए

तिरे ग़मज़ों को अपने काम से काम
किसी के दिल को ताब आए न आए

उसे शरमाएँगे ज़िक्र-ए-अदू पर
ये क़िस्मत है हिजाब आए न आए

तुम आओ जब सवार-ए-तौसन-ए-नाज़
क़यामत हम-रिकाब आए न आए

शुमार अपनी ख़ताओं का बता दूँ
तुम्हें शायद हिसाब आए न आए

नए ख़ंजर से मुझ को ज़ब्ह कीजे
फिर ऐसी आब-ओ-ताब आए न आए

शब-ए-वस्ल-ए-अदू तेरी बला से
किसी मुज़्तर को ख़्वाब आए न आए

पियूँगा आज साक़ी सेर हो कर
मयस्सर फिर शराब आए न आए

ये जा कर पूछ आ तू उन से दरबाँ
कि वो ख़ाना-ख़राब आए न आए

न देखो 'दाग़' का दीवान देखो
समझ में ये किताब आए न आए