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पयाम-ए-यास न दे ऐ निगाह-ए-यार मुझे | शाही शायरी
payam-e-yas na de ai nigah-e-yar mujhe

ग़ज़ल

पयाम-ए-यास न दे ऐ निगाह-ए-यार मुझे

मानी जायसी

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पयाम-ए-यास न दे ऐ निगाह-ए-यार मुझे
रख इज़्तिराब की ख़ातिर उमीद-वार मुझे

नए करिश्मे दिखाता है ए'तिबार मुझे
ख़िज़ाँ है आलम-ए-नैरंगी-ए-बहार मुझे

वुफ़ूर-ए-शौक़ से आँखों में रूह खिच आई
पयाम-ए-मौत था वा'दे का ए'तिबार मुझे

नज़र उठा कि मिरी ज़िंदगी कहे लब्बैक
मैं खो न जाऊँ कहीं इक ज़रा पुकार मुझे

जज़ा है ग़म की तो मिल जाए आज ऐ 'मानी'
कि सौ ग़मों का है ग़म कल का इंतिज़ार मुझे