EN اردو
पत्थर के ख़ुदा पत्थर के सनम पत्थर के ही इंसाँ पाए हैं | शाही शायरी
patthar ke KHuda patthar ke sanam patthar ke hi insan pae hain

ग़ज़ल

पत्थर के ख़ुदा पत्थर के सनम पत्थर के ही इंसाँ पाए हैं

सुदर्शन फ़ाख़िर

;

पत्थर के ख़ुदा पत्थर के सनम पत्थर के ही इंसाँ पाए हैं
तुम शहर-ए-मोहब्बत कहते हो हम जान बचा कर आए हैं

बुत-ख़ाना समझते हो जिस को पूछो न वहाँ क्या हालत है
हम लोग वहीं से लौटे हैं बस शुक्र करो लौट आए हैं

हम सोच रहे हैं मुद्दत से अब उम्र गुज़ारें भी तो कहाँ
सहरा में ख़ुशी के फूल नहीं शहरों में ग़मों के साए हैं

होंटों पे तबस्सुम हल्का सा आँखों में नमी सी है 'फ़ाकिर'
हम अहल-ए-मोहब्बत पर अक्सर ऐसे भी ज़माने आए हैं