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पत्थर हो कि फ़ौलाद हो डरने का नहीं मैं | शाही शायरी
patthar ho ki faulad ho Darne ka nahin main

ग़ज़ल

पत्थर हो कि फ़ौलाद हो डरने का नहीं मैं

मोहम्मद आबिद अली आबिद

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पत्थर हो कि फ़ौलाद हो डरने का नहीं मैं
अब सूरत-ए-आईना बिखरने का नहीं मैं

जो ज़ात का मेरी है ख़ला चीज़ दिगर है
जो भर भी गए ज़ख़्म तो भरने का नहीं मैं

देखें न नज़र भर के मुझे देर तलक आप
जो चढ़ गया नज़रों में उतरने का नहीं मैं

की बादा-कशी तर्क-ए-मआबिद के मुक़ाबिल
अब इस से ज़ियादा तो सुधरने का नहीं मैं

दीदार तिरा मेरे लिए राहत-ए-जाँ है
बे-देखे तुझे जाँ से गुज़रने का नहीं मैं

अब जुर्म-ए-मोहब्बत की मिले कोई भी पादाश
तफ़तीश के दौरान मुकरने का नहीं मैं