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परिंदों से दरख़्तों से कहूँगा | शाही शायरी
parindon se daraKHton se kahunga

ग़ज़ल

परिंदों से दरख़्तों से कहूँगा

कंवल फ़िरोज़

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परिंदों से दरख़्तों से कहूँगा
मैं तेरा प्यार फूलों से कहूँगा

बिछड़ कर जा रही हो इतना सोचो
मिरी जाँ क्या मैं लोगों से कहूँगा

कहो उस से कि वापस लौट आए
मैं दुखड़ा अपना रस्तों से कहूँगा

उठो उठ कर उछालें ताज-ए-शाही
परेशाँ-हाल बंदों से कहूँगा

चुरा लाएँ तिरी आँखों से नींदें
मैं ख़्वाबीदा निगाहों से कहूँगा

'कँवल' को ला के दफ़नाएँ वतन में
वसिय्यत में ये बच्चों से कहूँगा