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परेशाँ था मगर ऐसा नहीं था | शाही शायरी
pareshan tha magar aisa nahin tha

ग़ज़ल

परेशाँ था मगर ऐसा नहीं था

सावन शुक्ला

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परेशाँ था मगर ऐसा नहीं था
कि मुझ में कोई तुझ जैसा नहीं था

तबाह होने लगी हर वक़्त वो भी
अकेला मैं ही दीवाना नहीं था

जफ़ा ग़म हिज्र ख़्वाहिश याद बातें
अगर देखो तो उस में क्या नहीं था

ग़ज़ब जल्वा-नुमा था वस्ल उस का
अभी तक सोचता हूँ था नहीं था

तुम्हारे इश्क़ के हाथों से मरने
हमें आना पड़ा आना नहीं था

वहीं से जिस्म उस का काँपता था
जहाँ पर मैं उसे छूता नहीं था

मोहब्बत थी न थी ये बात छोड़ो
जो तुम ने कह दिया कहना नहीं था