परेशाँ हूँ तिरा चेहरा भुलाया भी नहीं जाता
किसी से हाल-ए-दिल अपना सुनाया भी नहीं जाता
वो आ जाए तो ये भी कह नहीं सकता ठहर जाओ
अगर वो जा रहा हो तो बुलाया भी नहीं जाता
ज़बाँ ख़ामोश रहती है पर आँखें बोल देती हैं
इन आँखों से तो राज़-ए-दिल छुपाया भी नहीं जाता
सभी 'इमरान' की सूरत नहीं होते हैं दुनिया में
हर इक इंसान को दिल में बसाया भी नहीं जाता
कोई ताक़त मुझे मरने नहीं देती है ऐ 'सागर'
मैं मरना चाहता हूँ ज़हर खाया भी नहीं जाता

ग़ज़ल
परेशाँ हूँ तिरा चेहरा भुलाया भी नहीं जाता
इमरान साग़र