प्राण प्रीतम पे वार कर देखो
सर से गठरी उतार कर देखो
वो यम-ए-ज़ात हो कि रूद-ए-फ़ुरात
कोई दरिया तो पार कर देखो
पूस की ओस से बदन धो कर
मास को मुश्क-बार कर देखो
मुश्क था मू-बुरीदा हाथों से
सर को काँधों पे बार कर देखो
सुनो जंगल में पंछियों की सदा
बहते दरिया से प्यार कर देखो
ओढ़ कर तन पे तिश्नगी की रिदा
मन को मोहन के द्वार कर देखो
हो के मिट्टी मिटो सजन के लिए
मर के मरक़द निखार कर देखो
उतरो बचपन के नर्दबाँ से फिर
बन में चिड़ियों को मार कर देखो
कर्बला के जरी जियाले लोग
ख़ुद को उन में शुमार कर देखो
मअ'रिफ़त क्या है जान जाओगे
इस पे तन मन निसार कर देखो
लब पे आवाज़-ए-हक़ रहे क़ाएम
जंग जीतो कि हार कर देखो
क़यास बन-बास सब सफल होंगे
सादा को सुध सिंघार कर देखो
माँगो शब्बीर की शनासाई
ग़म पे मत इंहिसार कर देखो
ग़ज़ल
प्राण प्रीतम पे वार कर देखो
नासिर शहज़ाद