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पर सऊबत रास्तों की गर्मियाँ भी दे गया | शाही शायरी
par saubat raston ki garmiyan bhi de gaya

ग़ज़ल

पर सऊबत रास्तों की गर्मियाँ भी दे गया

अज़रा वहीद

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पर सऊबत रास्तों की गर्मियाँ भी दे गया
आने वाली छाँव की ख़ुश-फ़हमियाँ भी दे गया

सख़्त बीजों से सुनहरी बालियाँ भी भर गईं
गर्म झोंका मौसमों की सख़्तियाँ भी दे गया

बादलों की आस उस के साथ ही रुख़्सत हुई
शहर को वो आग की बे-रहमियाँ भी दे गया

एहतिसाब उस का अमल था उस से वो फ़ारिग़ हुआ
वक़्त सड़कों को लुटी शहज़ादियाँ भी दे गया

बेबसी और भूक में जो हौसले देता रहा
प्यार करने की मुझे कमज़ोरियाँ भी दे गया

टहनियाँ फूलों से लद कर रब के आगे झुक गईं
मौसम-ए-गुल जाते जाते तितलियाँ भी दे गया

आसमाँ ने माँ ज़मीं की गोद तो भर दी मगर
दे के बेटे उन को कुछ ना-समझियाँ भी दे गया