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पलकों पे लरज़ते रहे आँसू की तरह हम | शाही शायरी
palkon pe larazte rahe aansu ki tarah hum

ग़ज़ल

पलकों पे लरज़ते रहे आँसू की तरह हम

शकील शम्सी

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पलकों पे लरज़ते रहे आँसू की तरह हम
घर में तिरे महका किए ख़ुशबू की तरह हम

सूरज के लिए छोड़ा था उस ने हमें फिर भी
रातों को सताते रहे जुगनू की तरह हम

आते रहे जाते रहे कश्ती के मुसाफ़िर
पैरों से लिपटते रहे बालू की तरह हम

रेखा है खिंची और न है सीता कोई घर में
इस शहर में क्यूँ फिरते हैं साधू की तरह हम

ग़ैरों से ज़्यादा हमें अपनों ने सताया
इस मुल्क में ज़िंदा रहे उर्दू की तरह हम