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पल-दो-पल है फिर ये सोना मिट्टी का | शाही शायरी
pal-do-pal hai phir ye sona miTTi ka

ग़ज़ल

पल-दो-पल है फिर ये सोना मिट्टी का

अतहर नासिक

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पल-दो-पल है फिर ये सोना मिट्टी का
कर दो मिरा तय्यार बिछौना मिट्टी का

इक ठोकर से दोनों टूट के देखते हैं
तू काँच का मैं हूँ खिलौना मिट्टी का

तेरे शीश-महल की छत भी शीशे की
मेरे घर का कोना कोना मिट्टी का

कितने मअनी रखता है ज़रा ग़ौर तो कर
कूज़ा-गर के हाथ में होना मिट्टी का

आग का हँसना देख हवा के लहजे में
पानी की आवाज़ में रोना मिट्टी का