पल-दो-पल है फिर ये सोना मिट्टी का
कर दो मिरा तय्यार बिछौना मिट्टी का
इक ठोकर से दोनों टूट के देखते हैं
तू काँच का मैं हूँ खिलौना मिट्टी का
तेरे शीश-महल की छत भी शीशे की
मेरे घर का कोना कोना मिट्टी का
कितने मअनी रखता है ज़रा ग़ौर तो कर
कूज़ा-गर के हाथ में होना मिट्टी का
आग का हँसना देख हवा के लहजे में
पानी की आवाज़ में रोना मिट्टी का
ग़ज़ल
पल-दो-पल है फिर ये सोना मिट्टी का
अतहर नासिक