EN اردو
पक गई हैं आदतें बातों से सर होंगी नहीं | शाही शायरी
pak gai hain aadaten baaton se sar hongi nahin

ग़ज़ल

पक गई हैं आदतें बातों से सर होंगी नहीं

दुष्यंत कुमार

;

पक गई हैं आदतें बातों से सर होंगी नहीं
कोई हंगामा करो ऐसे गुज़र होगी नहीं

इन ठिठुरती उँगलियों को इस लपट पर सेंक लो
धूप अब घर की किसी दीवार पर होगी नहीं

बूँद टपकी थी मगर वो बूँदों बारिश और है
ऐसी बारिश की कभी उन को ख़बर होगी नहीं

आज मेरा साथ दो वैसे मुझे मालूम है
पत्थरों में चीख़ हरगिज़ कारगर होगी नहीं

आप के टुकड़ों के टुकड़े कर दिए जाएँगे पर
आप की ताज़ीम में कोई कसर होगी नहीं

सिर्फ़ शाइ'र देखता है क़हक़हों की असलियत
हर किसी के पास तो ऐसी नज़र होगी नहीं