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पैरहन उड़ जाएगा रंग-ए-क़बा रह जाएगा | शाही शायरी
pairahan uD jaega rang-e-qaba rah jaega

ग़ज़ल

पैरहन उड़ जाएगा रंग-ए-क़बा रह जाएगा

नजीब अहमद

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पैरहन उड़ जाएगा रंग-ए-क़बा रह जाएगा
फूल के तन पर फ़क़त अक्स-ए-हवा रह जाएगा

हम तो समझे थे कि चारों दर मुक़फ़्फ़ल हो चुके
क्या ख़बर थी एक दरवाज़ा खुला रह जाएगा

किर्चियाँ हो जाएँगी आँखें भी ख़्वाबों की तरह
आईनों में नक़्श सा तस्वीर का रह जाएगा

बात लब पर आ गई तो कौन रोकेगा उसे
और तेरा हाथ होंटों से लगा रह जाएगा

सोच लेना अन-सुनी बातें सुनेंगे एक दिन
देख लेना हर फ़साना अन-कहा रह जाएगा

ऐ गुनहगारों के दुश्मन ऐ निको-कारों के यार
कौन जाने क्या मिटेगा और क्या रह जाएगा

हम बिछड़ जाएँगे शाख़-ए-उम्र से गिर कर 'नजीब'
इक तने पर नाम दोनों का लिखा रह जाएगा