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पैहम तलाश-ए-दोस्त मैं करता चला गया | शाही शायरी
paiham talash-e-dost main karta chala gaya

ग़ज़ल

पैहम तलाश-ए-दोस्त मैं करता चला गया

शकील बदायुनी

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पैहम तलाश-ए-दोस्त मैं करता चला गया
कौनैन की हदों से गुज़रता चला गया

जितना मज़ाक़-ए-इश्क़ सँवरता चला गया
रंग-ए-तबीअत और निखरता चला गया

इक संग-दिल की दीदा-दिलेरी तो देखना
शिकवों का ए'तिराफ़ भी करता चला गया

बे-चारगी तो देखिए मजबूर-ए-शौक़ की
तोहमत मुक़द्दरात पे धरता चला गया

देते रहे फ़रेब-ए-मुसर्रत वो पय-ब-पय
मैं ग़म की मंज़िलों से गुज़रता चला गया

तस्वीर-ए-यास-ओ-ग़म थी ब-ज़ाहिर निहाँ मगर
हर नक़्श दिल ही दिल में उभरता चला गया

दिल महव-ए-इज़्तिराब नज़र साकित-ओ-ख़ामोश
ये कौन सामने से गुज़रता चला गया