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पहुँचा हूँ आसमाँ पे तुझे ढूँढता हुआ | शाही शायरी
pahuncha hun aasman pe tujhe DhunDhta hua

ग़ज़ल

पहुँचा हूँ आसमाँ पे तुझे ढूँढता हुआ

मरातिब अख़्तर

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पहुँचा हूँ आसमाँ पे तुझे ढूँढता हुआ
ऐ मुख़्तसर बसीत सितारे क़रीब आ

बिखरे हुए तलब के तक़ाज़े इधर-उधर
कपड़े गिलास क़हक़हे साहिल पे जा-ब-जा

बेटा सुनो कहा ये मुझे इक बुज़ुर्ग ने
महदूद किस क़दर है ये टुकड़ा ज़मीन का

उन बस्तियों के पार उधर दूर उस तरफ़
लर्ज़ां है ख़ौफ़-ए-मर्ग से इंसान आज का

पागल सा एक आदमी कल दूर तक मुझे
मुड़ मुड़ के देखता गया पहचानता गया