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पहुँचा है आज क़ैस का याँ सिलसिला मुझे | शाही शायरी
pahuncha hai aaj qais ka yan silsila mujhe

ग़ज़ल

पहुँचा है आज क़ैस का याँ सिलसिला मुझे

शेर मोहम्मद ख़ाँ ईमान

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पहुँचा है आज क़ैस का याँ सिलसिला मुझे
जंगल की रास क्यूँ न हो आब-ओ-हवा मुझे

आना अगर तिरा नहीं होता है मेरे घर
दौलत-सरा में अपने ही इक दिन बुला मुझे

वो होवे और मैं हूँ और इक कुंज-ए-आफ़ियत
इस से ज़ियादा चाहिए फिर और क्या मुझे

पैदा किया है जब से कि मैं रब्त-ए-इश्क़ से
बेगाना जानता है हर एक आश्ना मुझे

काफ़िर बुतों की राह न जा आ ख़ुदा को मान
पीर-ए-ख़िरद ने गरचे कहा बार-हा मुझे

पर क्या करूँ कि दिल ही नहीं इख़्तियार में
उस ख़ानुमा-ख़राब ने आजिज़ किया मुझे

पहले ही अपने दिल को न देना था उस के हाथ
'ईमान' अब तो कोई पड़ी है वफ़ा मुझे