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पहुँच कर शब की सरहद पर उजाला डूब जाता है | शाही शायरी
pahunch kar shab ki sarhad par ujala Dub jata hai

ग़ज़ल

पहुँच कर शब की सरहद पर उजाला डूब जाता है

ग़यास अंजुम

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पहुँच कर शब की सरहद पर उजाला डूब जाता है
न हो जिस का कोई वो बे-सहारा डूब जाता है

जिसे गाता है कोई बरबत-ए-सद-चाक-दामाँ पर
फ़ज़ा-ए-बे-यक़ीनी में वो नग़्मा डूब जाता है

यहाँ तो दिल की बातें हैं हमारा तजरबा है ये
जो सत्ह-ए-आब पर रखिए तो पैसा डूब जाता है

तअ'ल्लुक़ देर से मज़बूत करता है जड़ें अपनी
ज़रा सी चूक से सदियों का रिश्ता डूब जाता है

तिरी यादों की दुनिया से कभी जो दूर होता हूँ
उदासी घेर लेती है नज़ारा डूब जाता है

न जाने क्या हो तेरे शहर में अब जा के देखूँगा
यहाँ तो अपनी क़िस्मत का सितारा डूब जाता है

उबल पड़ता है आफ़त का कहीं लावा तो फिर 'अंजुम'
ग़म-ओ-अंदोह में मासूम चेहरा डूब जाता है