पहले तो डर लगा मुझे ख़ुद अपनी चाप से
फिर रो दिया मैं मिल के गले अपने आप से
देखा है हाँ उसे है वो कुछ मिलता जुलता सा
मुतरिब की मीठी मीठी सुरीली अलाप से
थी बात ही कुछ ऐसी कि दीवाना हो गया
दीवाना वर्ना बनता है कौन अपने आप से
रहना है जब हरीफ़ ही बन कर तमाम उम्र
क्या फ़ाएदा है यार फिर ऐसे मिलाप से
आया इधर ख़याल उधर मह्व हो गया
कहने को था न जाने अभी क्या मैं अपने आप से
हम और लगाएँ अपने पड़ोसी के घर में आग
भगवान ही बचाए हमें ऐसे पाप से
'नौशाद' रात कैसी थी वो महफ़िल-ए-तरब
लगती थी दिल पे चोट सी तबले की थाप से

ग़ज़ल
पहले तो डर लगा मुझे ख़ुद अपनी चाप से
नौशाद अली