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पहले साबित करें इस वहशी की तक़्सीरें दो | शाही शायरी
pahle sabit karen is wahshi ki taqsiren do

ग़ज़ल

पहले साबित करें इस वहशी की तक़्सीरें दो

शम्स-उन-निसा बेगम शर्म

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पहले साबित करें इस वहशी की तक़्सीरें दो
क्यूँ मिरे पाँव में पहनाते हैं ज़ंजीरें दो

दोनों ज़ुल्फ़ों का तिरी आया जो वहशत में ख़याल
पड़ गईं पाँव में मेरे वहीं ज़ंजीरें दो

कहाँ क़ासिद ने कि लाया हूँ मैं पैग़ाम-ए-विसाल
आज ख़िलअत मुझे पहनाओ कि जागीरें दो

दर्द-ए-दिल दर्द हुआ सीना की सोज़िश भी गई
शर्बत-ए-वस्ल में तेरे हैं ये तासीरें दो

या बहाने से बुलाएँ उसे या ख़त ही लिखें
'शर्म' क्या ख़ूब ये सूझीं हमें तदबीरें दो