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पहले की ब-निसबत है मुझे काम ज़ियादा | शाही शायरी
pahle ki ba-nisbat hai mujhe kaam ziyaada

ग़ज़ल

पहले की ब-निसबत है मुझे काम ज़ियादा

जमाल ओवैसी

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पहले की ब-निसबत है मुझे काम ज़ियादा
दिल को है मगर ख़्वाहिश-ए-आराम ज़ियादा

नाकाम रही शायरी जिन पेश-रवों की
देते हैं अज़ीज़ों को वो पैग़ाम ज़ियादा

कम-कोश थे कज अपनी कुलह रख नहीं पाए
बाग़ी न बने और हुए बदनाम ज़ियादा

कुछ हारे हुए बैठ के अब सोच रहे हैं
आग़ाज़ क्या कम हुआ अंजाम ज़ियादा

दुनिया से तवक़्क़ो' नहीं कुछ दाद-ओ-सितद की
ख़ूबाँ को सदा देती है दुश्नाम ज़ियादा