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पहले इंकार बहुत करता है | शाही शायरी
pahle inkar bahut karta hai

ग़ज़ल

पहले इंकार बहुत करता है

नज़ीर क़ैसर

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पहले इंकार बहुत करता है
ब'अद में प्यार बहुत करता है

चूम कर जलती हुई पेशानी
वो गुनहगार बहुत करता है

मान लेता है वो सारी बातें
फिर भी तकरार बहुत करता है

घर से बाहर नहीं आता लेकिन
हार-सिंघार बहुत करता है

ज़र्द पत्तों का सुनहरा मौसम
मुझ को बीमार बहुत करता है

एक बोसा हो या आँसू 'क़ैसर'
चेहरा गुलनार बहुत करता है