पहले इंकार बहुत करता है
ब'अद में प्यार बहुत करता है
चूम कर जलती हुई पेशानी
वो गुनहगार बहुत करता है
मान लेता है वो सारी बातें
फिर भी तकरार बहुत करता है
घर से बाहर नहीं आता लेकिन
हार-सिंघार बहुत करता है
ज़र्द पत्तों का सुनहरा मौसम
मुझ को बीमार बहुत करता है
एक बोसा हो या आँसू 'क़ैसर'
चेहरा गुलनार बहुत करता है
ग़ज़ल
पहले इंकार बहुत करता है
नज़ीर क़ैसर