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पहले होता था बहुत अब कभी होता ही नहीं | शाही शायरी
pahle hota tha bahut ab kabhi hota hi nahin

ग़ज़ल

पहले होता था बहुत अब कभी होता ही नहीं

साहिबा शहरयार

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पहले होता था बहुत अब कभी होता ही नहीं
दिल मिरा काँच था टूटा तो ये रोता ही नहीं

वो जो हँसते थे मिरे साथ उन्हें ढूँडूँ कहाँ
कैसी दुनिया है जहाँ का कोई रस्ता ही नहीं

एक मुद्दत से मैं बैठी हूँ यही आस लिए
चाँद आँगन में मिरे किस लिए उतरा ही नहीं

मुझ को मा'लूम नहीं रौनक़-ए-महफ़िल क्या है
दश्त-ए-तन्हाई से दिल मेरा निकलता ही नहीं

क्या अजब शख़्स था हर बात पे ख़ुश रहता था
वक़्त क्या बदला कि वो ढूँडे से मिलता ही नहीं