पहले हमारी आँख में बीनाई आई थी
फिर इस के बा'द क़ुव्वत-ए-गोयाई आई थी
मैं अपनी ख़स्तगी से हुआ और पाएदार
मेरी थकन से मुझ में तवानाई आई थी
दिल आज शाम से ही उसे ढूँडने लगा
कल जिस के बा'द कमरे में तन्हाई आई थी
वो किस की नग़्मगी थी जो दारों सरों में थी
रंगों में किस के रंग से रा'नाई आई थी
फिर यूँ हुआ कि उस को तमन्नाई कर लिया
मेरी तरफ़ जो चश्म-ए-तमाशाई आई थी
ग़ज़ल
पहले हमारी आँख में बीनाई आई थी
अम्मार इक़बाल