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पहले हम उस की महफ़िल में जाने से कतराए तो | शाही शायरी
pahle hum uski mahfil mein jaane se katrae to

ग़ज़ल

पहले हम उस की महफ़िल में जाने से कतराए तो

मुज़फ़्फ़र हनफ़ी

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पहले हम उस की महफ़िल में जाने से कतराए तो
लेकिन क्या कीजे जब दिल की शामत ही आ जाए तो

इस झगड़े में हम-सायों की दख़्ल-अंदाज़ी वाजिब है
बुनियादी मौज़ूअ यही था जाग पड़े हम-साए तो

ग़ज़लों में रंगीनी लाने की बाबत फिर सोचूँगा
पहले ये बतला दो उस ने छुप कर तीर चलाए तो

ख़ुद मिलने की ख़्वाहिश करना अलबत्ता मंज़ूर नहीं
वैसे हम कम-ज़र्फ़ नहीं हैं वो ज़हमत फ़रमाए तो

अपना हक़ हासिल करने की ख़ातिर मैं भी चलता हूँ
मेरा तेरा साथ न होगा हाथ अगर फैलाए तो

उस की ख़सलत भाँप चुका हूँ बातें हँस कर टालेगा
और यक़ीनन बात बनेगी बातों पर झल्लाए तो

लोग 'मुज़फ़्फ़र'-हनफ़ी को भी पाबंदी से पढ़ते हैं
चिकनी-चपड़ी ग़ज़लें पढ़ते पढ़ते जी उकताए तो