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पहले दर्द-ए-दिल पे कहते थे कि ये क्या हो गया | शाही शायरी
pahle dard-e-dil pe kahte the ki ye kya ho gaya

ग़ज़ल

पहले दर्द-ए-दिल पे कहते थे कि ये क्या हो गया

तालिब बाग़पती

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पहले दर्द-ए-दिल पे कहते थे कि ये क्या हो गया
अब ये काविश है कि क्यूँ बीमार अच्छा हो गया

दिल भी पहलू में कभी इक चीज़ था यादश-ब-ख़ैर
अब ख़ुदा जाने कहाँ जाता रहा क्या हो गया

आ गए लो वो अयादत के लिए ख़ुद आ गए
हो गया बीमार दर्द-ए-हिज्र अच्छा हो गया

एक मोती सा चमकता है सर-ए-मिज़्गान-ए-नाज़
औज पर क्या मेरी क़िस्मत का सितारा हो गया

हो गया सब मेरे शिकवों का जवाब-ए-ला-जवाब
उन का शर्मा कर ये कह देना तुम्हें क्या हो गया

कसरत-ए-दीदार से उन की निगाहें झुक गईं
अक्स मिज़्गाँ का नक़ाब-रु-ए-ज़ेबा हो गया

सहते सहते जो न सहना था उसे भी सह लिया
पीते पीते ज़ेर-ए-ग़म आख़िर गवारा हो गया

आप ही पहले उठा दी रू-ए-रौशन से नक़ाब
आप ही फिर पूछते हैं चाँद को क्या हो गया

रात भीगी जा रही है सर्द आहें हो चलीं
छोड़ ये मद-होशियाँ 'तालिब' सवेरा हो गया